Posts

सुध

अन्दर ही अन्दर वो  हल्ला मचा किया करती है  ढले हुवे  पल से  वार्ता किया करती है  ढले हुवे क्षण कि  याचना करा देती है  अभ्यन्तर में वो  पीड़ा दिया करती है  ✍️सोमलता मौर्य 

मजे कि तलाश

कंहा  भटक  रही  हो  यार । मजे कि तलाश कर रही हूँ ।। मजे  कि  तलाश  मत कर । मजे        करना      सीख।। वर्ना ज़िन्दगी गुजर जायेगी। मजे   कि  तलाश   में   ही ।। ✍️ सोमलता मौर्य  

उम्मीद

खिसकते  - खिसकते  सिसकते -   सिसकते, धीरे  -  धीरे    से   वो आती  है    मेरे    पास, गुजरे  हुवे   कल   को  बताती   है   मेरे  पास, आँखों    में    छलकते  आँसू       थे      उसमे, सपने    भी    झलकते  बेकाबू      थे      उसमें, कोई       और       नहीं  वो किसी कि उम्मीद थी, ✍️सोमलता मौर्य 

बेटियाँ

बेटियाँ  बोझ  बन  जाती  हैं  जब वो बेटी बनकर  इस दुनिया में आती हैं , जब लोगो के कहने पर इक माँ भी आ  जाती है बेटी थी मै भी कभी ये कहने  से मुकर जाती है  जब  बछेन्दी इक   बेटी होकर   एवरेस्ट पर चढ़ जाती है , तब  इक  माँ भी  बेटी  थी  मैं  भी  कभी ये  कहकर  खुशियों   से   उछल   जाती है , बेटियाँ   बेटी   होने   से घबरा  जाती   हैं  जब निर्भया के साथ  हुवे  दुराचार को आँखों    से     अपने     लगाती    हैं , बेटियाँ  मे  हिम्मत आ  जाती  हैं जब किरणवेदी कि दहाड़ को कानो से अपने  लगातीं हैं , जो   कहते  हैं   बेटियाँ    होती   हैं   बोझ  सिर  झुक   जाता  है   उन   लोगों   का, जब    कल्पना  चावला  होकर    इक    बेटी  चाँद को, लोगो  के  हाथ  में  रखकर इस   दुनिया  से   जाती  है ।, ✍️सोमलता मौर्य  :-

हिन्दी इंग्लिश

इंग्लिश को है  सोची  हमने  बोली है ये बहुत  ही  प्यारी  इंग्लिश को जब बोली हमने  प्यार न ही हमजोली  इसमें  ✍️सोमलता :

गुस्सा है मेरी जुबानी नहीं

ए मेरे दोस्त क्यूँ मुह मोड़ लेता है  इक    पल     में     तूँ   ये  गुस्सा  ही तो   है  मेरी  जुबानी  तो नहीं  चल इसे छोड़ते हैं यहीं  आगे    निकलते   हैं    कहीं , ये इतनी ही नहीं आगे और भी कहीं , तू चलता जा मुझे सम्लभाता जा , इसका अन्त भी है कंही  तूँ  समझा  तो   सही , ये  गुस्सा  ही  तो  है  मेरी जुबानी  तो नहीं , ✍️सोमलता मौर्य 

प्रेम का दिवाना

देखा      एक      रात  छाया   वो  किसी  कि , अगले ही  दिन  आया  वो  मिलने  को  मुझसे , चिड़के          उछलके  वो  कहता   है   मुझसे , करती    है       लालच  तूँ     पैसो     से     मेरे  , रातो को  चमकती  हुई  तूँ    गालो     से    खेले , अपनी  निखारती हुई तू तूँ  जवाबों   को   दे  ले , देखा       है      तुझको मै   शरीफो    के   पीछे , क्यूँ तू मेरे इरादों से खेले  निकलजा     तूँ      अब, उन    बगीचो  के   पीछे  देखी      थी      तुझको , जिन   शरीफों  के  नीचे ।, ✍️ सोमलता मौर्य